Katha Star के प्रिय पाठकों, आज के इस लेख की शुरुआत हम कर रहे हैं, पूज्य श्री रसिका पागल जी महाराज Rasika Pagal Baba Biography के एक शेर से।
आप बड़े भाव के साथ इसे पढ़ें और श्री बिहारी जी तक अपने दिल की बात पहुंचायें-
जिस मोड़ पर हम तुम मिले, मुंह मोड़ कर तुम चल दिये।
अरमान दिल में रह गये, यूं छोड़कर तुम चल दिेये।
शीशे सा नाजुक दिल मेरा, यूं तोड़कर तुम चल दिये।
हमसे ये रिश्ते प्यार के, यूं जोड़कर तुम चल दिये।
पागल बाबा का परिचय (Rasika Pagal Baba Wiki):-
Rasika Pagal Ji Maharaj वृन्दावन को बिहारी जी का हृदयस्थल बताते हैं। हजारों श्रोताओं के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि-
बाबा रसिका पागल जी ने कहॉ से संगीत सीखा?
कैसे वृन्दावन पहुंचे?
कैसे रिक्शा चलाते-चलाते आज विश्वविख्यात भजन गायक बन गये?
एकांत में रहने वाले यह पागल बाबा (Rasika Pagal Baba) केवल बिहारी जी और राधेरानी का गुणगान करते हैं। पागल बाबा को भारत में नहीं, बल्कि विदेशों में भी सुना जाता है।
पागल बाबा को भजनों की दुनिया का सरताज कहा जाता है, जिनके सानिध्य में रहकर कई भजन गायकों ने अपने करियर की शुरुआत की है।
जिनमें से प्रमुख हैं- बाबा चित्र विचित्र जी महाराज, बाबा हाउ बिलाउ जी महाराज, मदना पागल, धसिका पागल।
पागल बाबा का जन्म स्थान (Pagal Baba Birth Place):-
श्री धाम वृन्दावन ही रसिका पागल जी महाराज का जन्म स्थान है।
श्री धाम वृन्दावन में स्थित श्री गिरिराज के पास एक गॉव में उनका पुश्तैनी निवास स्थान है।
पागल बाबा के पूर्वज श्री गिरिराज से पलायन करके श्री धाम वृन्दावन आकर बस गये थे,
जिससे पागल बाबा (Rashika Pagal Baba) और उनके भाई-बहनों का जन्म श्री धाम वृन्दावन में ही हुआ है।
‘रसिका पागल’ का क्या अर्थ है:-
रसिका पागल शब्द का मतलब होता है जो बिहारी के प्रेम रस में डूबा रहे और उनके रस को पा ले, वही पागल है।
पागल शब्द का उल्टा होता है- ‘लग पा’। मतलब पहले लग फिर पा।
आसान शब्दों में कहें तो पहले नौकरी पर लग फिर वेतन पा।
पहले पढ़ाई में लग, फिर रिजल्ट को पा।
इसी प्रकार पहले भक्ति में लग, फिर भगवान को पा।
यह पूरी दुनिया ही पागलखाना है, क्योंकि हर कोई कुछ न कुछ पाने में लगा हुआ है।
कोई धन पाने में लगा हुआ है, कोई इज्जत पाने में लगा हुआ है तो कोई नाम यश पाने में लगा हुआ है। लेकिन ये सब झूठे पागल हैं।
सच्चा पागल वही है, जो बिहारी जी के प्रेम रस में डूबा है और उनके रस को पाने में लगा हुआ है।
पागल बाबा (Rasika Pagal Ji Maharaj) कहते हैं कि अगर पागलपन में जरा भी होशियारीपन आ गया, तो ठाकुरजी उससे दूर होते चले जाते हैं,
क्योंकि भक्ति का रंग ऐसा ही है, जो भक्त को बावरा और पागल बना देता है, पर शर्त यह है कि भक्ति सच्ची होनी चाहिए।
चतुर चालाकों से ठाकुर जी हमेशा दूर ही रहते हैं तथा भोलेभाले सीधे साधे दीनों से प्रभु बहुत प्यार करते हैं।
बाबा का नाम रसिका पागल कैसे पड़ा:-
जब रसिका पागल Rasika Pagal Ji Maharaj से पूछा गया कि उनका नाम रसिका पागल कैसे पड़ा तो बाबा कहते हैं कि-
तुलसी तुलसी सब कहें, तुलसी वन की घास
जब होई किरपा राम की, तो हो गये तुलसीदास।।
मैं तो एक बहुत ही साधारण जिंदगी जी रहा था और विषयों विकारों में फसा हुआ एक तुच्छ जीव था,
लेकिन अचानक मुझपर एक महानुभाव की कृपा दृष्टि पड़ी, जो मेरे गुरुदेव सरकार हैं,
उन्होंने मुझे मेरी दुख भरी जिंदगी से उठाकर इस सुख के सागर में डुबो दिया।
वरना मुझे कौन जानता था और मुझे कौन पूछने वाला था।
यह तो मेरे गुरुदेव सरकार और बांके बिहारी जी की ही कृपा थी उन्होंने आज मुझे सच्चा पागल ही बना दिया है।
बाबा रसिक पागल जी कहते हैं कि जब उन्हें अपने गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त हुआ था तब उनके गुरुजी ने उन्हें ‘रसिकदास’ नाम दिया था।
और धीरे-धीरे साधारण बोलचाल की भाषा में लोग और भी उपनामों से बाबा को बुलाने लगे जैसे रसिका, रसिके, रसिक बिहारी इत्यादि।
चूंकि बाबा बचपन से ही हर बात को गाकर कहा करते थे, इसी प्रकार वह अपने गुरु के सानिध्य में रहते हुये भी हर बात को गाकर कहते और दिन भर गाते ही रहते।
एक बार उनके दादा गुरुजी ने कहा आज से तू मेरी सेवा किया करेगा, क्या तू मेरी सेवा कर पायेगा?
क्योंकि तू पहले से ही आधा पागल है और उनके गुरुजी भी उनसे अक्सर कहा करते थे कि यह तो पागल हो गया है, तब से बाबा को सभी लोग ‘रसिका पागल’ के नाम से बुलाने लगे।
और उनके भक्त भी बाबा को प्यार से ‘बाबा रसिका पागल जी महाराज’ कहकर संबोधित करते हैं।
बाबा कहते हैं कि पागल बनने में ही आनंद है। दुनिया का हर व्यक्ति अपने आप को भूलकर कुछ न कुछ पाने में लगा है इसलिए मैं कहता हॅू कि-
मैं दुनिया की नजर में पागल और दुनिया मेरी नजर में पागल।
ये दुनिया पागलखाना है, यहॉ पागल आते जाते हैं।
मेरा-मेरा कहने वाले, वो पागल बन के जाते हैं।।
कोई पागल है धन दौलत का, कोई पागल बेटे नारी का।
सच्चा पागल तो वो ही है, जो पागल है बांके बिहारी का।।
पागल बाबा (Pagal Baba) की संगीत की शिक्षा:-
पागल बाबा की पूज्य माताजी भजन गाया करती थी और अपने भजनों के माध्यम से श्री ठाकुरजी को रिझाया करती थी।
जब पागल बाबा अपनी मॉ के गर्भ में आये तो उन्होंने गर्भ में रहकर ही अपनी मॉ के भजनों को सुनना प्रारंभ कर दिया
और वहीं से उनकी संगीत की शिक्षा शुरु हो गयी थी।
जब पागल रसिक बाबा का जन्म हुआ और जब वे बोलने लायक हुये तो वे हर बात को गाकर कहा करते थे।
जैसे उन्हें भूख लगी है, प्यास लगी है, नींद आ रही है, गर्मी लग रही है या खेलने जाना है तो वे इन सब बातों को अपनी मॉ से गाकर कहा करते थे।
जिससे उनके परिवार के लोग और आस पड़ोस के लोग बहुत चकित हुये कि नन्हें से बालक में यह गायन कला कैसे आ गयी
और सबने इसे श्री बिहारी जी का ही कृपा प्रसाद माना।
तो इस प्रकार भजन गायक पागल बाबा ने अपनी मैया के गर्भ में ही संगीत सीखना शुरु कर दिया था
और जन्म के बाद श्री ब्रज वृन्दावन के रसिक संतों के मुख से सुन-सुनकर शेष संगीत सीख लिया।
उन्होंने संगीत की कोई विधिवत् शिक्षा नहीं ली है और ना ही वे किसी संगीत गुरु के पास संगीत की शिक्षा लेने गये हैं।
श्री बिहारी जी और श्री गुरुदेव भगवान की असीम कृपा ही थी कि पागल बाबा को उन्होंने संगीत की अमूल्य धरोहर प्रदान की।
पागल बाबा का कहना है कि उन्होंने कहीं क्लास में जाकर संगीत साधना नहीं की है,
यह तो कृपा साध्य वस्तु है जो उन्हें कृपा प्रसाद के रूप में प्राप्त हुयी है।
‘श्री हरिदास’ शब्द की महिमा:-
कथा स्टार के प्रिय पाठकों, आपने श्री रसिका पागल जी के भजन तो जरूर ही सुनें होंगे,
तो आप यह भी जानते होंगे कि रसिका पागल जी अपने हर भजन के पहले ‘श्री हरिदास’ नाम का जयकारा लगवाते हैं
और कहते हैं कि मुझ भिखारी को श्री हरिदास नाम की सभी श्रोता भिक्षा दो, मुझे इस शब्द की आदत हो गयी है।
वृन्दाव जो गयो नहीं, जप्यो नहीं हरिदास
तो बाको वैसे जानियो, ज्यों जंगल की घास।।
तो क्या आप जानते हैं कि पागल बाबा (Pagal Baba), श्री हरिदास शब्द का जयकारा क्यों लगवाते हैं? और इस नाम की भिक्षा क्यों लेते हैं?
यदि आप जानते हैं तो बहुत अच्छी बात है और यदि नहीं जानते हैं तो अब आप निश्चिंत हो जाइये,
मैंने इस शब्द की महिमा की बहुत खोजबीन की है ताकि कथा स्टार (Katha Star) के जो जिज्ञासु पाठक हैं,
वे भी श्री हरिदास नाम की महिमा से परिचित हो पायें। तो आइये जानते हैं:-
बहुत से लोगों को रसिकानंद पदचक्रचूड़ामणि स्वामी श्री हरिदास जी महाराज के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं है,
इसलिए जहॉ भी श्री हरिदास का जयकारा होता है, लोगों को लगता है कि यह किसी संत का नाम है।
परंतु वे यह नहीं जानते कि श्री हरिदास शब्द का महत्व क्या है।
एक रसिक संत कहते हैं कि- एक शब्द है ‘भारत’ जिसमें सवा सौ करोड़ से ज्यादा जनता समाई हुयी है।
ठीक उसी प्रकार स्वामी श्री हरिदास जी के नाम में सब कुछ समाया हुआ है।
श्री शब्द में श्री श्रीजी,
हरि शब्द में श्री बिहारी जी
और दास शब्द में भगवान के समस्त भक्त-भक्ता समाये हुये हैं।
इस एक नाम में ही सब कुछ आ जाता है।
श्री श्रीजी हरे हरिये, दासे दासी दास।
सा तें सखी सो जानिये, श्री हरिदास प्रताप।।
लाख बार हरि–हरि कहें, एक बार श्री हरिदास।
अति प्रसन्न श्री लाड़ली, देत विपिन को बास।।
पॉच अक्षर हैं, उनका मैं आपको अलग-अलग अर्थ बताता हॅू
1.श्री 2.ह 3.रि 4.दा 5.स
श्री श्री दायक सहज ही, ह रे पद देय हकार,
रूप रंग रस माधुरी, ये ते देत रकार। (रि)
देत दीन को दान नित, सदा वृन्दावन बास,
सा तें सखी सो जानिये, श्री हरिदास प्रताप।।
अर्थात्:-
शोभा, शक्ति, भक्ति, लक्ष्मी सब कुछ देने वाला अक्षर है ‘श्री’।
जो ‘ह’ अक्षर है, वह ठाकुर जी के वृन्दावन धाम, गोलोकधाम और जितने भी धाम हैं, सबकी प्राप्ति कराने वाला अक्षर है।
रूप, रंग, रस, माधुरी सब कुछ देने वाला ‘र’ अक्षर है ।
‘दा’ अक्षर दीनों को, भक्तों को, रसिकों को, संतों को सदा वृन्दावन बास देने वाला है।
और ‘स’ अक्षर से श्री जी की नित्य सहचरी सखी परिकर में शामिल हो जाते हैं।
तो एक ही नाम में सखी, बिहारी, बिहारणी, भक्त, भक्ता और वृन्दावन सब कुछ आ जाता है।
लाख बार श्री हरि कहो और एक बार श्री हरिदास, उसमें श्री हरिदास नाम का ज्यादा महत्व है।
पागल बाबा (Pagal Baba) के वृन्दावन के प्रति भाव:-
वृन्दावन धाम श्री ठाकुरजी का हृदय कमल है। श्री धाम वृन्दावन Vrindavan पृथ्वी पर नहीं है, यह ठाकुरजी के अधर कमल पर विराजमान है।
वृन्दावन रसिकों की भूमि हैं, यहॉ हमेशा रसिकजन अवतरित होते रहते हैं
और अपने-अपने भाव से वृन्दावन धाम की महिमा को गाते हैं।
बाबा रसिका पागल जी (Pagal Baba) कहते हैं कि वृन्दावन के तीन प्रकार हैं-
1# निज वृन्दावन
2#धाम वृन्दावन
3# ब्रज वृन्दावन
निज वृन्दावन 05 कोस का क्षेत्र कहलाता है।
धाम वृन्दावन 20 कोस का क्षेत्र कहलाता है, जिसमें गोकुल, बरसाना, नंदगॉव, गोवर्धन इत्यादि सभी आते हैं।
और 84 कोस की जो संपूर्ण परिक्रमा होती है, वह है ब्रज वृन्दावन।
भगवान कन्हैया ने जहॉ-जहॉ लीलायें की हैं, वह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज वृन्दावन में आता है
और जिस स्थान पर भगवान ने जिस प्रकार की लीला की, उस स्थान का नाम उसी लीला के आधार पर रखा गया है।
यह 84 कोस का जो आवरण है, यह बिहारी जी का हृदय कमल है।
शास्त्रीय प्रमाण:-
बाबा रसिका पागल जी (Pagal Rasika Baba) बताते हैं कि जब हिरण्याक्ष पृथ्वी को समुद्र में लेकर चला गया था,
तब भगवान विष्णु ने बराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का संहार किया और
पृथ्वी को समुद्र से बाहर लेकर आये थे तथा पृथ्वी का कल्याण किया था।
उस समय पृथ्वी ने समुद्र से बाहर आकर श्री धाम वृन्दावन को देखा और आश्चर्य के भाव से श्री नारायण से पूछा कि यह क्या है?
मैं तो रसातल में चली गयी थी, तो यह क्षेत्र कहॉ बसा है?
तब श्री ठाकुर जी ने कहा कि यह श्रीधाम वृन्दावन है, जिसे मैंने अपने हृदय पर बसाया है।
इसलिए श्री वृन्दावन धाम की महिमा का जितना वर्णन किया जाये, उतना ही कम है।
Rasika Pagal Baba wikipedia:-
नाम(Name) रसिका पागल बाबा जी महाराज जन्म स्थान(Birth Place) श्री धाम वृन्दावन, मथुरा (UP) गुरू का नाम दादा गुरुजी कार्य भजन कार्यक्रम एवं कथा फेसबुक पेज Shree Gurudev rasika pagal Baba g pariwaar पता परिक्रमा मार्ग वृन्दावन, मथुरा (UP) सम्पर्क सूत्र 93198-50895
बाबा रसिका पागल के बेस्ट भजन (baba rasika pagal bhajan):-
- करुणामयी कृपामयी मेरी दयामयी राधे।
- मेरा दिल तो दीवाना हो गया, मुरलीवाले तेरा।
- चलो जी चलो जी चलो वृन्दावन।
- मैं रटूंगी तेरा नाम राधा रानी।
- कान्हा की दीवानी बन जाउंगी।
- श्री राधा बरसाने वाली, तेरो पुजारी है गिरधारी।
- तू कान्हा मैं तेरी राधिका।
- बरसाने की राधा, श्री राधा राधा।
- मेरे कान्हा पे टोना कर गई।
- झूला झूलें श्यामा प्यारी।
- कजरारे तेरे मोटे मोटे नैन।
- आओ सुनाउं तुम्हें ब्रज की कहानी।
- पल भर के लिए कोई राधा नाम रट ले, झूठा ही सही।
- मीरा दीवानी हो गयी, मीरा मस्तानी हो गयी।
- श्यामा प्यारी श्री कुंज बिहारी प्यारी की, जय जय श्री हरिदास दुलारी।
- कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी।
- तेरी गलियों का हॅू आशिक, तू इक नगीना है।
- तेरे चरणों में हो जीवन की शाम।
- सांसों की माला पे सिमरू मैं पी का नाम।
- सांवरिया ले चल पर्ली पार।
- मैं तो तुम संग होली खेलूंगी, मैं तो तुम संग।
आपके प्रश्नों का उत्तर:-
प्रश्न:- क्या बाबा रसिका पागल जी की शादी हुयी है?
उत्तर:- नहीं।
प्रश्न:– रसिका पागल जी ने संगीत की शिक्षा किससे ली है?
उत्तर:- उन्होंने संगीत की कोई विधिवत् शिक्षा नहीं ली है, रसिक संतों के मुख से सुन-सुनकर कर ही संगीत सीख लिया था।
प्रश्न:- क्या रसिका पागल जी कहीं बाहर से आकर श्री धाम वृन्दावन में बसे हैं?
उत्तर:- नहीं, पागल बाबा अपने पूर्वजों के काल से श्री धाम वृन्दावन के ही निवासी हैं।
- राजेंंद्र दास जी महाराज के जीवन की सम्पूर्ण जानकरी
- श्याम सुदंर पाराशर जी की जीवनी
- भजन गायिका पूनम दीदी का जीवन परिचय
- भजन सम्राट विनोद अग्रवाल जी का जीवन परिचय
- स्वामी अशोक भारती का जीवन परिचय
चलते-चलते:-
यह जानकारी आपको कैसी लगी, हमें कॉमेंट करके बताना न भूलें। हम आपके कॉमेंट का इंतजार करते हैं।
मुझे आशा है कि आपको Pagal Baba की लगभग सभी जानकारियॉ मिल चुकी होगी। फिर भी अगर आपके पास इसके अतिरिक्त कोई और रोचक जानकारी है तो हमें कॉमेंट करके जरूर बतायें।
Rasika Pagal Baba Biography लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।