मित्रों आज इस लेख में हम आपको Swami Ashok Bharti Biography से परिचय करायेंगे। वैसे आपने तो Osho के बारे में बहुत सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि
ओशो के द्वारा दिये अमूल्य वचनों को वर्तमान में जन जन तक पहुचाने का कार्य ओशो के परम शिष्य विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक धर्मोपदेशक स्वामी श्री अशोक भारती जी कर रहे है।
इसलिये आप सबके लिये यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर स्वामी अशोक भारती की जीवनी क्या है, तो इस लेख में हम कोशिश करेगे कि अशोक भारती जी के जीवन से सम्बन्धित हर वह पहलू का उल्लेख किया जाय जिसे आप जानना चाहते है।
तो देर किस बात चलिये शुरू करते है-
मत पूछ मेरा हाल, कि मैं कितनी मौज में हूं। दुनिया में मोहब्बतें फैलाकर, बस एक मोहब्बत की खोज में हूं।
जन मानस तक शुद्धतम रूप में ओशो को पहुंचाना बहुत बड़ा भगीरथ कार्य है, और इस भगीरथ कार्य को स्वामी अशोक भारती एक लीला की तरह कर रहे हैं।
यह उनकी विशेषता है, इसका उनके उपर कोई बोझ नहीं है और यह उनका अवतार कृत्य भी है। ओशो का सपना था
इस पृथ्वी को दस हजार बुद्धों से भर देना
Swami Ashok Bharti, सद्गुरु ओशो के इसी सपने को पूरा कर रहे हैं।
स्वामी अशोक भारती, ओशो के अंतरंग शिष्यों में से एक हैं। ये अपनी ओजस्वी वाणी और ओजस्वी विचारों से देश व दुनिया को राह दिखा रहे हैं।
अशोक भारती कली के रूप में ओशो के पास आये थे, और आज फूल बनकर खिल गये हैं। ओशो ने धर्मदूत के रूप में Swami Ashok Bharti को चुना है।
अशोक भारती कहते हैं कि सद्गुरु जीवंत होता है इसलिए 19 जनवरी 1990 को ओशो के शरीर छोड़ने के बाद,
यदि हमने शरीर से प्रेम किया होता तो शरीर मिट जाने के बाद लगता है कि हम अनाथ हो गये,
लेकिन यदि हमने उसकी चेतना और चेतन तत्व को प्रेम किया है तो महसूस होगा
कि वो आज भी हमारे साथ कवच के रूप में रहकर हमें आधी, व्याधि और उपाधि से सुरक्षित रखते हैं।
स्वामी अशोक भारती का जन्म | Swami Ashok bharti date of birth
अशोक भारती जी का जन्म वर्ष 1948 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था।
स्वामी अशोक भारती जी का बचपन
Swami Ashok Bharti का लालन-पालन इनकी दादी ने किया था।
अशोक भारती की दादी मॉ, पास के ही भगवान कृष्ण के एक मंदिर में पुजारिन थी, जहॉ वे अपने साथ अशोक भारती को भी लेकर जाया करती थी।
अशोक भारती जब तीन साल के थे तब वे अपनी दादी के साथ मंदिर जाते और वहॉ अपने पैरों में घुंघरू बांधकर भगवान श्री कृष्ण के सामने नृत्य किया करते थे।
मंदिर में जो भी भक्तगण आते थे, वे नन्हें अशोक को लालच दिया करते थे कि ‘तू नाच के दिखा, मैं तुझे चार आने दूंगा।’
तो चार आने-आठ आने की लालच में अशोक भारती पैरों में घुंघरू बांधकर भगवान के सामने नाच किया करते थे,
जिससे सभी भक्तगण बहुत खुश होते थे और खुशी-खुशी अशोक को पैसा दिया करते थे। उस समय अशोक भारती की उम्र मात्र 03 साल ही थी।
कुछ सालों तक ऐसा ही चलता रहा। जब अशोक भारती 07 साल के हुये, तब उसी मंदिर के प्रांगण में उस समय के बहुत प्रसिद्ध और नामी संत स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज पधारे।
स्वामी अशोक भारती जी के बचपन में परिवर्तन
स्वामी श्री रामसुखदास जी उस मंदिर में 08 दिन तक रुके, जिससे Ashok Bharti को स्वामी जी के चरणों में 08 दिन तक बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके साथ ही साथ उनकी सेवा करने का भी मौका मिला।
वे स्वामी जी के लिए पानी भर देते, उनका कमरा साफ कर देते, उनका विस्तर ठीक कर देते, उनके लिए जरूरी सामान उपलब्ध करा देते वगैरह-वगैरह।
इस प्रकार 08 दिनों तक अशोक भारती ने स्वामी श्री रामसुखदास जी की खूब सेवा की।
स्वामी जी के सानिध्य में रहकर उनकी नि:स्वार्थ भाव से की गयी सेवा का परिणाम यह हुआ कि नन्हें अशोक के हृदय में आध्यात्म के बीज पड़ने शुरु हो गये।
और उनके मन में स्वत: ही परमात्मा के प्रति प्रेम का उदय होने लगा, उस समय यह कोई नहीं जानता था कि आगे चलकर यह बालक पूरे विश्व को रास्ता दिखायेगा।
इस प्रकार कुछ अभावों में व कुछ सामान्य परिस्थितियों में अशोक भारती ने अपना बचपन बिताया और अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती में ही पूरी की।
अशोक भारती का बचपन बहुत अभावों में बीता इसलिए वे इस बात को भलीभांति जानते थे कि परिवार चलाने के लिए पैसों की बहुत जरूरत पड़ती है।
Swami Ashok Bharti wife
इसी बीच उनकी शादी शीला से हो गयी। स्वामी अशोक भारती की धर्म पत्नी का नाम मां आनंद शीला (शालू मां) है।
जिन्होंने दिनांक 26.05.21 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन अपना शरीर छोड़ दिया। और हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गयी।
चूंकि अशोक भारती पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, इसलिए 18 साल की उम्र पूरी करते ही अमरावती जिला न्यायालय में उनको टाईपिस्ट की नौकरी मिल गयी।
जहॉ वे सुबह से शाम तक टाईपिंग का काम किया करते और उससे होने वाली कमाई से अपने परिवार का जीवन यापन करने लगे।
Swami Ashok bharti Wikipedia
नाम | स्वामी अशोक भारती |
जन्म तिथि | वर्ष 1948 |
जन्म स्थान | महाराष्ट्र के अमरावती जिले |
पत्नी का नाम | मां आनंद शीला |
गुरू | ओशो |
कार्य | ओशो के विचारों को प्रचार |
आश्रम का पता | Sri Ganganagar, Rajasthan |
मोबाइल नंबर | +91 82095 75717, +91 93268 42459 |
Official Youtube Channel | Guru Darshan – Swami Ashok Bharti |
Official Facebook Page | @ashokbhartipage |
Official Website | https://www.swamiashokbharti.com/ |
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स्वामी अशोक भारती की ओशो से दीक्षा लेने तक की यात्रा
जब Swami Ashok Bharti 19 साल के थे, उसी समय वर्ष 1967 में अमरावती में आचार्य रजनीश का आगमन हुआ।
जब अशोक भारती को पता चला कि कोई ओशो आये हैं, जो आध्यात्म पर बढि़या प्रवचन करते हैं,
तो अशोक भारती तो पहले से ही आध्यात्म में रूचि रखते थे इसलिए अनायास ही ओशो का प्रवचन सुनने पहुंच गये।
यह वही समय था जब अशोक भारती ने गुरुदेव रजनीश ओशो को पहली बार देखा था। उन्होंने ओशो का प्रवचन सुना, जिससे वे बहुत प्रभावित हुये।
हर फूल का पवन से, अनलिखा अनुबंध है,
खुशबू अपनी सौंपे बिना, मैं झरुं सौगंध है।
और उस प्रवचन के बाद आसपास के कई क्षेत्रों में गुरुदेव ओशो के प्रवचन थे, तो वहॉ भी अशोक भारती पहुंच जाया करते थे और गुरुदेव ओशो के प्रवचन सुनते थे,
और प्रवचन के पश्चात् उनकी सेवा भी किया करते थे तथा उनके साथ समय भी बिताया करते थे,
जिससे उनका, गुरुदेव रजनीश ओशो से थोड़ा परिचय हो गया और ओशो को भी अशोक भारती से लगाव हो गया।
इस अप्रतिम घटना के 05 साल बाद वर्ष 1972 में माउण्ट आबू में गुरुदेव रजनीश ओशो का ध्यान साधना शिविर आयोजित किया गया।
जिसमें अशोक भारती अपनी पत्नी को लेकर बड़ी ही आतुरता के साथ पहुंच गये।
उन्होंने पूरे प्रवचन को बड़े ही भाव से सुना और प्रवचन के पश्चात् अपने मन की बात गुरुदेव श्री रजनीश ओशो से कह दी
तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार।
सद्गुरु मिले अनंत फल, कहे कबीर विचार।
कि वे उनके शिष्य बनना चाहते हैं तथा वे उनको ही अपना सद्गुरु मानते हैं,
तब गुरुदेव ओशो ने स्वामी अशोक भारती से पूछा कि तुम करते क्या हो?
तब अशोक भारती बोले ‘गुरूदेव मैं अमरावती कोर्ट में एक छोटा सा टायपिस्ट हूं।’
यह सुनकर गुरुदेव ओशो मुस्कुराये और आंख बंद करके अशोक भारती से बोले कि तुम वह काम छोड़ दो।
अशोक भारती ने कहा ‘गुरूदेव आपका आदेश मैं कैसे टाल सकता हॅू, आपने कहा और मैंने छोड़ दिया।
और इसके बाद दिनांक 15 अक्टूबर 1972 को सद्गुरु ओशो से अशोक भारती ने अपनी पत्नी के साथ दीक्षा ग्रहण की।
ओशो का स्वामी अशोक भारती को आदेश
दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत अशोक भारती ने अपने गुरुदेव से निवेदन किया कि- ‘अब मेरे लिए क्या आदेश है?’
आचार्य ओशो ने आदेश दिया कि तुम यहॉ से मुंबई जाओ, जहॉ हमारा केन्द्र है ‘जीवन जाग्रति केन्द्र’
वहॉ आपको ईश्वर भाई नाम के व्यक्ति मिलेंगे, उनसे मेरी लिखी हुयी किताबें, मेरे साहित्य और मेरे ऑडियो व वीडियो कैसेट लेकर भारत भ्रमण पर निकल जाओ और पूरे भारत में मेरे संदेश को फैलाओ।
अपने गुरुदेव श्री ओशो का आदेश पाते ही अशोक भारती माउण्ट आबू से सीधे मुंबई आ गये,
जहॉ से उन्होंने श्री ओशो की किताबें और कैसेट उठायी और पूरे भारत में कई सालों तक घूमते रहे और अपने गुरु के संदेश को जन-जन तक पहुंचाते रहे।
पल भर की पहचान जगत में जीने का सामान दे गयी, पाने की अभिलाषा, खुद को खोने का वरदान दे गयी,पग का प्रथम रुझान, पग में मिटने का अरमान दे गयी।
Katha Star (कथा स्टार) के प्रिय पाठकों, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गुरुदेव ओशो का आदेश पाने के बाद
Swami Ashok Bharti माउण्ट आबू से सीधे मुंबई चले गये थे और वहॉ से भारत भ्रमण पर निकल गये थे
उस दिन के बाद से लेकर आज तक वे कभी अमरावती कोर्ट नहीं गये।
स्वामी अशोक भारती बताते हैं कि जैसे ही उन्हें अपने सद्गुरु का आदेश मिला उसके बाद उन्होंने कभी अमरावती कोर्ट की सीढ़ी तक नहीं चढ़ी।
उनकी अनुपस्थिति में उनकी नौकरी का क्या हुआ, उन्हें वहॉ से बर्खास्त किया गया या निलंबित किया गया या निकाला गया, वे खुद नहीं जानते।
गुरू के संदेश को प्रचारित करने में स्वामी आशोक भारती को कठिनाई
जब Swami Ashok Bharti अपने सद्गुरु के संदेश को पूरे भारत में फैला रहे थे उस समय ओशो का कोई ज्यादा नाम नहीं था। तथा उनके नाम का कोई ज्यादा प्रचार भी नहीं था।
थोड़ा बहुत मीडिया के माध्यम से जो प्रचार था वह बहुत ही नकारात्मक था, इसलिए अशोक भारती जहॉ भी ओशो की चर्चा करते, उनके ज्ञान के बारे में लोगों को बताते
तो अक्सर अशोक भारती को गालियॉ सुनने को मिलती। लोग, अशोक भारती का तिरस्कार करते
और कई-कई बार तो अपने गॉव से चले जाने के लिए भी उनसे कहते।
तो ऐसी स्थिति में अशोक भारती गॉव के बाहर किसी झोपड़ी में रात गुजारा करते थे,
उस समय उनके पास ज्यादा पैसे भी नहीं हुआ करते थे इसलिए कभी रेलवे स्टेशन पर
तो कभी किसी पेड़ के नीचे भी रात गुजारनी पडती तथा कभी-कभी तो खाली पेट भी सोना पड़ जाता था।
हमें जिस चीज की प्राप्ति हो जाती है, उसमें सुख की समाप्ति हो जाती है।
इस प्रकार की कई विषम परिस्थितियों का सामना करते हुये स्वामी अशोक भारती ने सद्गुरु ओशो के संदेश को पूरे भारत में फैलाने का पवित्र काम किया।
और स्वामी अशोक भारती जी का यह भारत भ्रमण कार्यक्रम पूरे 07 साल तक (वर्ष 1979 तक) लगातार चलता रहा।
07 साल तक लगातार घर से बाहर रहने, एक नियमित दिनचर्या न होने और अत्याधिक शारीरिक श्रम करने का परिणाम यह हुआ कि
उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा, जिससे उन्हें यात्रा करने में कठिनाई होने लगी। इसलिए स्वामी अशोक भारती ने सोचा कि अब वे एक जगह स्थायी होकर अपने सद्गुरु का प्रचार करेंगे,
इसलिए अशोक भारती वर्ष 1979 के बाद मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में आ गये, जहॉ उनके रहने की कुछ व्यवस्था हो गयी और
अपनी जीविका चलाने के लिए वे कुछ काम भी करने लगे और इस काम के साथ-साथ वे अपने गुरु का संदेश भी लोगों तक पहुंचाते रहे।
इस प्रकार लगभग 06 साल तक स्वामी अशोक भारती जबलपुर में रहकर अपने गुरुदेव के ज्ञान को लोगों तक पहुंचाते रहे।
ओशो के प्रति स्वामी अशोक भारती का प्रेम
दिसम्बर 1985 में गुरुदेव ओशो अमेरिका के रजनीशपुरम् से वापस भारत लौटे और मनाली आ गये।
जैसे ही अशोक भारती को पता चला कि उनके गुरुदेव भारत आये हैं और मनाली में ठहरे हैं
तो वे तुरंत मनाली पहुंच गये और लगभग एक माह तक ओशो के सानिध्य में रहे और उनके साथ समय बिताया।
वहॉ वे ओशो के प्रवचन सुनते, उनकी सेवा करते, उनके पास बैठते, उनको टहलते हुये देखते और उनको अपने खुद के द्वारा लिखे हुये गीत सुनाते।
तुझको मैं क्या अर्पण करूं, तेरी शरण को छोड़कर मैं जग की शरण का क्या करूं।
यह सिलसिला लगभग एक माह तक चला, एक माह के बाद गुरुदेव ओशो मनाली से नेपाल चले गये
कुछ दिन नेपाल में रुकने के बाद फिर वे विश्व की यात्रा पर निकल गये। और अशोक भारती वापस जबलपुर आ गये और अपने काम में फिर लग गये।
29 जुलाई 1986 को गुरुदेव ओशो फिर भारत आये और इस बार वे मुंबई में रुके, चूंकि आप सभी शायद जानते होंगे कि उस समय ओशो का पूना में आश्रम था,
परंतु कुछ निजी कारणों से वे अपने पूना स्थित आश्रम में नहीं जाना चाहते थे
सलिए मुंबई में अपने एक मित्र के यहॉ तीन बैडरूम के छोटे से अपार्टमेंट में लगभग 06 माह तक रुके।
जैसे ही अशोक भारती को पता कि सद्गुरु का पुन: भारत आगमन हुआ है तो वे अपने सद्गुरु का सानिध्य पाने के लिए मुंबई आ गये।
जिस अपार्टमेंट में ओशो ठहरे थे, उसके एक कमरे में उनका शयनकक्ष बनाया गया तथा
उसके ड्राइंग रूम में लगभग 50 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी, जहॉ ओशो नित्य प्रति प्रवचन किया करते थे।
प्रवचन के आरंभ के समय में और प्रवचन के अंत के समय में प्रतिदिन स्वामी अशोक भारती, सद्गुरु ओशो को गीत गाकर सुनाया करते थे।
08 अगस्त 1986 की बात है, ओशो ने अपने शयनकक्ष में स्वामी अशोक भारती को बुलाया और लगभग आधा घंटा उनके गीतों को सुना।
अशोक भारती प्रतिदिन एक नया गीत लिखते, उसकी धुन बनाते और सद्गुरु ओशो के चरणों में बैठकर उस गीत को अपनी आवाज में गाकर ओशो के चरणों में अर्पित कर देते।
न खुदा परस्त मिले, न बुत परस्त मिले,
फकीर जहां भी मिले, बस मस्ती में मिले।
यह सिलसिला 06 महीने तक चला, ओशो अपने प्रिय शिष्य Swami Ashok Bharti द्वारा लिखे हुये गीतों को बड़ी ही प्रसन्नता के साथ सुनते और उनका प्रोत्साहन करते।
उनके सभी गीतों को ओशो पसंद करते थे, ऐसा कोई गीत नहीं है, जिसे ओशो ने पसंद न किया हो।
स्वामी अशोक भारती ने ओशो की प्रेरणा और आशीर्वाद से करीब 250 गीत सद्गुरु ओशो पर लिखे और उन्हें अर्पण किये।
06 माह बाद ओशो अपने पूना स्थित आश्रम में आ गये, जहॉ वे अपने साथ अशोक भारती को भी ले आये।
उस समय आश्रम में ज्यादा लोगों के ठहरने की व्यवस्था नहीं थी इसलिए आश्रम के हर कमरे में उस समय लगभग 8 से 10 लोग एक साथ रहा करते थे।
पर ऐसी स्थिति में भी यदि अकेले कमरे में कोई लोग उस समय रह रहे थे तो वे केवल दो ही लोग थे, पहले सद्गुरु ओशो और दूसरे स्वामी अशोक भारती।
स्वामी अशोक भारती बताते हैं कि सद्गुरु ओशो का उनके उपर खूब प्रेम बरसा।
जब ओशो को लगा कि उनका शिष्य उनके सानिध्य में रहकर अब परिपक्व हो गया है, तब एक दिन उन्होंने अशोक भारती को बुलाया
जो पल भी नहीं है विभक्त,
वही है सच्चा भक्त।
और कहा कि अब तुम जाओ, तब अशोक भारती अपने सद्गुरु के आदेशानुसार पूना से जबलपुर आ गये।
अशोक भारती बताते हैं कि सद्गुरु ओशो के सानिध्य में रहकर उन्हें कई आध्यात्मिक अनुभव हुये और उनकी सारी जिज्ञासायें सद्गुरु ओशो के चरणों में बैठने से समाप्त हो गयी।
ओशो ने भी अपने प्रिय शिष्य के संबंध में अपने प्रवचनों के दौरान कई बार चर्चा की है।
सद्गुरु ओशो के स्वामी अशोक भारती पर ऐसे कुल 04 प्रवचन हैं, जिनमें ओशो ने स्वामी अशोक भारती के बारे में विस्तार से चर्चा की है।
एक प्रवचन में तो ओशो ने करीब-करीब सबा घंटा स्वामी अशोक भारती पर बोला है और अपना आशीर्वाद प्रदान किया है।
स्वामी अशोक भारती ने ओशो को ही क्यों चुना-
स्वामी अशोक भारती बताते हैं कि यदि वे ओशो से प्रभावित न होते तो आश्चर्य होता।
क्योंकि उनकी हर स्वांस कहती थी कि मैं ब्रम्ह हूं। उनका व्यक्तित्व इतना विराट, इतना विशाल था कि
उनकी हर स्वांस जैसे साक्षी दे रही हो कि मैं परमात्मा हूं।
उनका व्यक्तित्व इतना औजपूर्ण, इतना माधुर्य से भरा हुआ, इतना मुस्कुराता हुआ था,
उनकी आंखे देखकर ऐसा लगता था कि ये धरती की आंखें ही नहीं है, ये किसी और लोक की खबर दे रही हैं।
उनके पैरों का जमीन पर स्पर्श करना, स्वामी अशोक भारती को आज भी रोमांचित कर जाता है।
ओशो जैसे चलते थे, वैसे चलने वाला इंसान आज तक उन्होंने धरती पर नहीं देखा।
ओशो बहुत खूबसूरत और मित्रवत स्वाभाव के थे। इसलिए अशोक भारती उन्हें गुरु से ज्यादा मित्र समझते हैं, संगी-साथी समझते हैं।
ओशो द्वारा दिया गया संदेश एक वैज्ञानिक संदेश है। उनके द्वारा कही गयी हर एकबात साश्वत सत्य है।
जो आदमी उनकी बातें पढेगा या सुनेगा वह समझ जायेगा कि इनकी बातों में कोई लाग लपेट नहीं है, कोई मिलावट नहीं है।
केवल और केवल शुद्ध सोना ही है।
दुनिया में ओशो का विरोध क्यों है-
स्वामी अशोक भारती कहते हैं कि इतिहास में देखें तो गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, सुकरात, मंसूर व ओशो आदि हर महापुरुष अपने वक्त के बहुत पहले आ जाता है।
बुद्ध आये गये कितनी बार हमें, झकझोरे मगर हम जगते नहीं।
हम तो ऐसे ईधन बन गये हैं, कोई लाख जलाये सुलगते नहीं,
जब तक रहे वो हमने फिक्र न की, और जाने पर मजारों पर रोते हैं।
और उसके द्वारा कहीं गयी बातें व उसके विचार वर्तमान के लोगों की समझ में नहीं आते,
उसको समझने के लिए बहुत वक्त लगता है और जब तक लोगों की समझ में आता है तब तक वह महापुरष जा चुका होता है
तब फिर हम उसे मंदिर मस्जिद चर्च में ढूंढ़ते हैं, जीते जी उसकी कद्र नहीं करते। बाद में उसके मंदिर बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
धरती पर हमेशा यही दिक्कत होती रही कि जब-जब कोई परमात्मा का प्यारा मानव जाति का कल्याण करने के लिए धरती पर आया,
तब-तब समाज ने उसे स्वीकार नहीं किया, उस पर इल्जाम लगाये, उसे जहर पिला दिया, उसे काट डाला, मार डाला या सूली पर चढा दिया
और उसके जाने के बाद मंदिर, मठ, मस्जिद, चर्च बनाकर उसे खोजते हैं, जहॉ सिवाय व्यापार के कुछ नहीं होता है।
यह हमारे समाज की बडी गंदी परम्परा है कि हम समय रहते महापुरुष को समझ नहीं पाते।
अब रही बात ओशो की, तो सवाल यह नहीं है कि ओशो ने क्या कहा, उनके द्वारा कही गयी कौन कौन सी बातें विवादित हैं
सवाल यह है कि हमें ओशो से क्या मिला, ओशो की बातों ने हमारे जीवन में क्या अच्छे परिवर्तन किये और उन्होंने मनुष्यता को क्या दिया।
जो ओशो के चाहने वाले हैं, उनसे प्यार करने वाले हैं, उन्हें समाज देश दुनिया में इस संदेश को फैलाना चाहिए।
फूलों में बस रहे हो तुम, कलियों में खिल रहे हो तुम
मेरे तो मन में तुम ही तुम, मंदिर में जाकर अब मैं क्या करूं।
चन्द्रमा बनकर आप ही तारों में जगमगा रहे, तेरी छबि के सामने दीपक जलाकर मैं क्या करूं।
अशोक भारती कहते हैं कि ओशो के संपूर्ण ज्ञान का सार यदि एक लाइन में दिया जाये तो वह यह है कि
अपने आप को जाने बिना इस जन्म में अपनी अर्थी मत उठने दो।
अशोक भारती के प्रसिद्ध विचार
- इस धरती को और सुंदर बनाने की बजाय हम इसे नष्ट करने में लगे हुये हैं।
- दुनिया के विनाश का एकमात्र कारण है, मनुष्य के पास ध्यान का न होना।
- हर सम्पत्ति अपने साथ एक नयी विपत्ति लाती है।
- 24 घंटे में से 1 घंटा सुबह और 1 घंटा शाम हमें अपने ईश्वर को देना चाहिए।
- भौतिकता कभी भी मनुष्य के जीवन में शांति नहीं ला सकती है।
- परमात्मा से जुड़े बिना कोई व्यक्ति आनंदित हो ही नहीं सकता।
- इस जगत में हमें हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है और जो हम चुकाते हैं वह हमारे पास कई गुना होकर वापस लौटता है।
- दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो बाहर की सभी सुविधाओं को अपने आत्मिक विकास में लगाये।
- इस दुनिया का हर आदमी काम वासना के प्रति निंदा से भरा हुआ है।
- संसार तो सीढ़ी है, जहॉ से परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन संसार में ही उलझ जाना, यह कोई जीवन नहीं है।
- यदि कोई ध्यान के पड़ोस में रहता है, तो वह है संगीत।
स्वामी श्री अशोक भारती के आश्रम का पता:-
स्वामी श्री अशोक भारती जी के आश्रम का नाम है ‘गुरु दर्शन’। जो अभी हाल ही में बनकर तैयार हुआ है।
जिसका उद्घाटन इसी वर्ष 2021 में गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर उनके कुशल संचालन में सूरतगढ़, राजस्थान में होने जा रहा है।
दिनांक 22 जुलाई संध्याकाल से 25 जुलाई दोपहर दीक्षा महोत्सव तक ‘ओशो गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ मनाया जायेगा।
और इसी के साथ इस पवित्र आश्रम का शुभारंभ किया जायेगा।
दिलों में रहता हूं, धड़कने थमा देता हूं
मैं इश्क हूं, वजूद की धज्जियॉ उड़ा देता हूं।
Katha Star के प्रिय आध्यात्मिक साथियों, आप सभी इस बात से परिचित होंगे कि गुरु पूर्णिमा का पावन अवसर साधना के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण होता है
और इस अवसर का आप पूरी तरह से लाभ ले पायें इसके लिए आश्रम के आसपास का वातावरण इसमें आपकी मदद करेगा।
क्योंकि सूरतगढ़ में स्थित यह आश्रम एकांत वातावरण, हरे-भरे जंगल, सुंदर पशु पक्षियों और सुनहरी पहाडि़यों से घिरा हुआ है,
जो आपको ध्यान के मार्ग पर ले जाने के लिए बड़ा ही अनुकूल माहौल उपलब्ध करायेगा।
यदि आप भी गुरुदेव ओशो की छत्रछाया और स्वामी अशोक भारती के सानिध्य में ध्यान में डूब जाना चाहते हैं,
तो आपको इस आश्रम में जरूर जाना चाहिए। आश्रम का पता है:-
Guru Darshan Ashram
Village Peperan, Suratgarh, Dist. Sri Ganganagar, Rajasthan (335804)
यह आश्रम सूरतगढ़ रेलवे स्टेशन से बीकानेर हाइवे पर मात्र 13 km की दूरी पर स्थित है,
जहॉ पहुंचने के लिए आपको ऑटो रिक्शा, टैक्सी, बस इत्यादि वाहन 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं।
निकटतम एयरपोर्ट बीकानेर, यहॉ से मात्र 03 घंटे की दूरी पर स्थित है।
यदि आप आश्रम अकेले जाना चाहते हैं तो आपको single room मिल जायेगा और
यदि आप परिवार के साथ जाना चाहते हैं तो आपको family room भी उपलब्ध कराया जायेगा।
कमरे की बुकिंग कैसे करना है, कमरे का चार्ज क्या रहेगा आदि जानकारी लेने के लिए आप इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं:- +91 82095 75717, +91 93268 42459, +91 83292 64705
चलते -चलते
चलते चलते हम एक बात आपसे जरूर कहना चाहेंगे कि जिस किसी से हमें कुछ अच्छा सीखने को मिलता है उसे जरूर सीखें। क् योंकि सीखने की क्रिया से एक अच्छे इंसान का उदय होता है।
यह जानकारी आपको कैसी लगी, हमें कॉमेंट करके बताना न भूलें। हम आपके कॉमेंट का इंतजार करते हैं।
मुझे आशा है कि आपको Swami Ashok Bharti की लगभग सभी जानकारियॉ मिल चुकी होगी। फिर भी अगर आपके पास कोई जानकारी है तो हमें कॉमेंट करके जरूर बतायें।
Swami Ashok Bharti Biography लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।